पाठ 1: कबीर (साखी) - Class 10 Hindi (स्पर्श-2)
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(Updated Solution 2024-2025) (updated Solution 2024-2025)
NCERT Solutions for Class 10 Hindi
पाठ 1: कबीर (साखी)
(प्रश्न उत्तर, जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ)
कबीर: जीवन परिचय
प्रस्तावना
भारतीय संत परंपरा में कबीर का नाम सर्वाधिक सम्मानित और लोकप्रिय संत कवियों में आता है। वे केवल एक कवि ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक, धार्मिक विचारक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी थे। कबीर का जीवन और साहित्य दोनों ही समाज के लिए प्रेरणादायक रहे हैं। उनकी वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी वह मध्यकालीन भारत में थी। कबीर ने अपने दोहों, साखियों और रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त पाखंड, अंधविश्वास और धार्मिक आडंबरों पर करारा प्रहार किया।
कबीर का जीवन परिचय
कबीर का जन्म 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में माना जाता है। अधिकांश विद्वानों के अनुसार, उनका जन्म सन् 1398 ई. के आस-पास हुआ था। कबीर का जन्म एक मुसलमान जुलाहा परिवार में हुआ था, जो काशी (वर्तमान वाराणसी) में रहते थे। उनके माता-पिता का नाम नीरू और नीमा बताया जाता है। हालांकि, कबीर के जन्म से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार वे एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिन्होंने लोक लज्जा के कारण उन्हें त्याग दिया, और बाद में एक मुस्लिम दंपति ने उन्हें अपनाया।
कबीर का पालन-पोषण मुस्लिम वातावरण में हुआ, परंतु उनके विचारों में हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों की समन्वय भावना स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। उन्होंने किसी औपचारिक शिक्षा को ग्रहण नहीं किया, लेकिन जीवन के अनुभवों ने उन्हें आध्यात्मिक रूप से अत्यंत समृद्ध बना दिया। कबीर को ‘राम’ नाम से अत्यंत लगाव था, लेकिन उनका ‘राम’ कोई विशेष धार्मिक प्रतीक नहीं था, बल्कि वह परमात्मा का निराकार स्वरूप था।
कबीर के जीवन का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि वे संत रामानंद के संपर्क में आए और उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने समाज में व्याप्त जातिवाद, धार्मिक भेदभाव, मूर्तिपूजा, रोज़ा-नमाज़ आदि सभी पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाया और सहज भाव से ईश्वर भक्ति पर बल दिया।
कबीर का साहित्यिक परिचय
कबीर हिंदी साहित्य के भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। वे निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। कबीर ने ब्रज, अवधी, भोजपुरी और खड़ी बोली का मिश्रण करते हुए अपनी वाणी को जनसामान्य के अनुकूल बनाया। उनके काव्य की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ कहा जाता है। यह भाषा सरल, सहज और व्यावहारिक है, जो आम जनमानस को सीधे प्रभावित करती है।
कबीर का साहित्य लोक अनुभवों से भरपूर है। वे बड़े ही स्पष्टवादी, निर्भीक और विद्रोही स्वभाव के थे। उनकी रचनाओं में गूढ़ दर्शन, सामाजिक चेतना और आध्यात्मिकता का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने अपने काव्य में अलंकारों, छंदों और शैलीगत कलात्मकता की बजाय भाव की गहराई और सत्य की निर्भीक अभिव्यक्ति पर बल दिया।
कबीर के साहित्य का केंद्रीय विषय ईश्वर की प्राप्ति, आत्मा का शुद्धिकरण, माया का त्याग और समाज में समता की स्थापना रहा है। उन्होंने अपने दोहों और साखियों के माध्यम से जीवन के गूढ़ तत्वों को अत्यंत सरल भाषा में प्रस्तुत किया।
कबीर की प्रमुख रचनाएँ
कबीर ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा था। उनकी रचनाएं मौखिक रूप से प्रसारित होती रहीं और उनके अनुयायियों ने उन्हें बाद में संग्रहित किया। कबीर की रचनाओं का प्रमुख संग्रह “बीजक” (Bijak) के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा उनकी रचनाएं साखी, सबद और रमैनी के रूप में उपलब्ध हैं।
1. बीजक (Bijak):
बीजक कबीर की रचनाओं का सबसे महत्वपूर्ण संग्रह है। इसमें उनके विभिन्न पद, सबद, रमैनी और साखियां संकलित हैं। बीजक का अर्थ होता है – “बीज” अर्थात मूल बात। इसमें उनके जीवन दर्शन, धार्मिक आलोचना और आत्मा-परमात्मा की एकता की गहरी व्याख्या मिलती है।
2. साखी:
साखी दोहों के रूप में लिखी गई रचनाएं हैं। ये अनुभवजन्य बातें होती हैं जो जीवन के गूढ़ रहस्यों को संक्षेप और प्रभावशाली भाषा में प्रकट करती हैं। उदाहरण:
“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।”
यह साखी आत्मविश्लेषण की ओर संकेत करती है।
3. सबद (शब्द):
सबद भक्ति और ध्यान पर आधारित गीत होते हैं। ये मुख्यतः निर्गुण ब्रह्म की स्तुति और उसके साथ आत्मा के मिलन की आकांक्षा को व्यक्त करते हैं। सबदों में गहरे दार्शनिक विचार छिपे होते हैं।
4. रमैनी:
रमैनी कबीर की तात्विक और व्यंग्यात्मक शैली की कविताएं हैं। इसमें सामाजिक समस्याओं, पाखंडों, और बाह्याचारों पर गहरी चोट की गई है।
कबीर की भाषा और शैली
कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ कहा जाता है, जो हिंदी की कई बोलियों का मिश्रण है। इसमें ब्रज, अवधी, भोजपुरी, राजस्थानी तथा पंचमेल खड़ी बोली का प्रयोग है। उनकी भाषा अत्यंत सरल, मुहावरेदार, और प्रभावशाली होती है। कबीर की शैली में व्यंग्य, प्रतीक, अनुप्रास, विरोधाभास और उपमा जैसे अलंकारों का अत्यंत सहज प्रयोग देखने को मिलता है।
कबीर अपने विचारों को सीधे, सरल और सशक्त भाषा में अभिव्यक्त करते हैं। उन्होंने कभी शब्दों की चमत्कारिकता पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि भाव की तीव्रता और सच्चाई को प्राथमिकता दी।
कबीर का सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण
कबीर समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, जातिवाद, पाखंड और धार्मिक विभाजन के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में फैले पाखंडों की आलोचना की। वे मानते थे कि ईश्वर का सच्चा स्वरूप निराकार और सर्वव्यापक है। उन्होंने बाह्य आडंबरों की बजाय अंतरात्मा की शुद्धता और सच्चे प्रेम पर बल दिया।
उनका मानना था कि मंदिर जाने या मस्जिद में सिर झुकाने से ईश्वर नहीं मिलते, बल्कि वह मनुष्य के हृदय में वास करता है। उन्होंने कर्म, सच्चाई और सेवा को धर्म का मूल आधार माना।
“माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।”
इस दोहे में कबीर ने बाहरी पूजा-पाठ की बजाय आंतरिक साधना को महत्व दिया है।
कबीर की मृत्यु और प्रभाव
कबीर की मृत्यु सन् 1518 के आसपास मानी जाती है। उनकी मृत्यु के समय उनके अनुयायियों में विवाद हुआ कि अंतिम संस्कार मुस्लिम रीति से हो या हिन्दू रीति से। कहा जाता है कि जब शव से चादर हटाई गई तो वहां केवल फूल पाए गए। इस घटना से यह संदेश दिया गया कि कबीर किसी एक धर्म के नहीं थे, बल्कि संपूर्ण मानवता के थे।
कबीर के विचारों का प्रभाव केवल उनके समय तक सीमित नहीं रहा। उनके अनुयायियों ने ‘कबीर पंथ’ की स्थापना की, जो आज भी भारत सहित विश्व के कई हिस्सों में सक्रिय है। कबीर के दोहे आज भी स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं, और समाज सुधार की प्रेरणा देते हैं।
निष्कर्ष
कबीर भारतीय समाज के उस महान संत कवि थे जिन्होंने धर्म, जाति और पंथ से ऊपर उठकर सत्य की साधना की। उन्होंने जनभाषा में आध्यात्मिक ज्ञान, सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों को प्रस्तुत किया। कबीर का जीवन और साहित्य आज भी लोगों को प्रेरित करता है कि वे अंधविश्वास, पाखंड और बाह्याचार से मुक्त होकर सत्य, प्रेम और करुणा के मार्ग पर चलें।
उनकी वाणी में एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करती है और उसके भीतर छिपे ईश्वर को जानने का मार्ग प्रशस्त करती है। कबीर का साहित्य भारतीय समाज की चेतना का दर्पण है, जिसे जितना पढ़ा जाए, उतना ही नया अर्थ मिलता है।
प्रश्न अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है ?
उत्तर 1:
(i) अपने तन को शीतलता: कबीर दास जी का कहना है कि सबसे मधुर और मीठी वाणी बोलनी चाहिए। इससे सुनने वालों को सुख मिलता है और बोलने वाले को भी शांति और शीतलता का अनुभव होता है। शीतलता का अर्थ है मानसिक शांति और आनंद। जब हम मीठी वाणी बोलते हैं, तो हमारे हृदय को भी शांति मिलती है और हमें आंतरिक सुख का अनुभव होता है।
(ii) औरों को सुख: मीठी वाणी से सुनने वाले का हृदय प्रसन्न होता है। जब हम दूसरों के लाभ और भलाई के लिए बात करते हैं, तब हमारी बातें उन्हें सुख देती हैं। जब सुनने वाला खुश होता है, तो बोलने वाले को भी आत्मिक संतोष और खुशी मिलती है। इसलिए, हमें हमेशा ऐसी बातें कहनी चाहिए जो दूसरों को खुश करें और उनका दिल जीतें।
प्रश्न 2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 2:
(1) अहंकार का नाश: यहाँ पर प्रभु के ज्ञान की तुलना दीपक के प्रकाश से की गई है, और अहंकार को अंधकार के समान बताया गया है। कवि के अनुसार, जब तक हृदय में अहंकार रहता है, तब तक प्रभु को जानने का ज्ञान नहीं हो पाता। जैसे अंधकार में कोई चीज़ स्पष्ट नहीं दिखती, वैसे ही अभिमान के कारण प्रभु की सत्ता का अनुभव नहीं हो पाता।
(2) ज्ञान का प्रकाश: ठीक वैसे ही जैसे दीपक का प्रकाश अंधकार को मिटा देता है और सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगता है, वैसे ही ज्ञान के प्रकाश से प्रभु की महिमा, कृपा और उसकी सत्ता का एहसास होने लगता है। साखी में ‘मैं’ शब्द अहंकार को दर्शाता है।
प्रश्न 3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?
उत्तर 3:
(1) ईश्वर को जानने का ज्ञान का अभाव – ईश्वर सर्वव्यापक हैं, उनकी उपस्थिति हर कण में अदृश्य रूप से विद्यमान है, लेकिन वह हमें दिखाई नहीं देते। उनकी सत्ता को हम केवल अनुभव कर सकते हैं। जैसे किसी भी विषय को जानने के लिए हमें उसका ज्ञान प्राप्त करना होता है, वैसे ही ईश्वर को जानना और देखना भी एक विशेष ज्ञान की बात है। जब तक हमें इसका ज्ञान नहीं होता, तब तक हम ईश्वर को नहीं देख सकते, भले ही वह हमारे आसपास हों।
(2) ईश्वर के ज्ञान की प्राप्ति – जब हमें ईश्वर का सही ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो हम उन्हें न केवल महसूस कर सकते हैं, बल्कि प्रत्यक्ष रूप से देख भी सकते हैं। वह हमारे हृदय में विद्यमान होते हैं और हर जगह हैं। लेकिन ज्ञान के अभाव में, हम उन्हें मंदिरों और तीर्थ स्थलों में खोजते हैं, जबकि वह हमारे अंदर ही होते हैं।
प्रश्न 4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन ? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं ? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 4:
(1) सुखी और दुखी व्यक्ति:
संसार के लोग भौतिक सुखों में लिप्त होते हैं और उन्हीं को असली सुख मानते हैं। इन लोगों के लिए सुख का अर्थ भोग-विलास है। परंतु कबीर दास जी इन लोगों की इस भ्रामक समझ को देखकर दुखी होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि भौतिक सुख तो क्षणिक हैं और वास्तविक सुख प्रभु के साथ जुड़ा हुआ है, जो स्थायी होता है। इसलिए, कबीर दास संसार के लोगों के भोग-विलास में बहे रहने को दुखी मानते हैं, जबकि जो प्रभु के ज्ञान को समझते हैं, वे सच्चे सुखी होते हैं।
(2) सोना और जागना:
यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ प्रतीकात्मक रूप से प्रयोग किए गए हैं। ‘सोना’ उस अवस्था को दर्शाता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु के ज्ञान से अज्ञात होता है और केवल भौतिक सुखों में डूबा रहता है, जो स्वप्न जैसी वास्तविकता से दूर है। वहीं, ‘जागना’ उस व्यक्ति की स्थिति को दर्शाता है, जो प्रभु के वास्तविक ज्ञान को समझता है और स्थायी सुख की ओर अग्रसर होता है। इसलिए, ‘सोना’ असल में आत्मज्ञान से दूर रहना है, और ‘जागना’ सच्चे सुख की खोज में जागृत होना है।
प्रश्न 5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है ?
उत्तर 5:
(i) कबीर का विचार है कि हमें अपनी निंदा करने वाले व्यक्तियों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए। इससे हमें अपनी बुराइयों को बार-बार सुनने का मौका मिलता है, जिससे हम उन्हें सुधारने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया से हमारी सभी गलतियाँ दूर हो जाती हैं और हमारा स्वभाव शुद्ध हो जाता है।
(ii) कबीर का यह भी सुझाव है कि हमें निंदक व्यक्ति के लिए हमारे घर में एक स्थान निश्चित करना चाहिए। ताकि वह बार-बार हमारे सामने हमारी कमियाँ बताए और हम उन्हें सुधारते जाएं।
प्रश्न 6. ‘एकै अषिर पीव का, पढ़ें सु पंडित होइ’, इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर 6: (i) संसार का पढ़ना – कबीर दास यह कहते हैं कि लोग पुस्तकें पढ़कर दुनिया की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन यदि इन किताबों से उनके हृदय में सच्चा प्रेम नहीं जागता, तो यह ज्ञान व्यर्थ है। सच्चे पंडित वह हैं जिनके हृदय में प्रेम होता है, न कि वह जो केवल किताबों के शब्दों का अध्ययन करते हैं।
(ii) पढ़ें सु पंडित होइ – ‘पीव’ का अर्थ है परमेश्वर से प्रेम। जो व्यक्ति प्रभु के प्रेम का ज्ञान प्राप्त कर लेता है, वही असली पंडित कहलाता है। असली ज्ञान वही है जो प्रभु से प्रेम करने और उसे समझने के माध्यम से प्राप्त होता है। जब किसी के हृदय में ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम जागता है, तो वह सभी के प्रति सच्चा प्रेम महसूस करता है। इस प्रकार कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें प्रभु का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और सभी के साथ प्रेम करना चाहिए।
प्रश्न 7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 7: कबीर की साखियों की भाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- जन-भाषा – कबीर की साखियों में शास्त्रीय भाषा का उपयोग नहीं किया गया है। उन्होंने सामान्य जनता की बोली, यानी लोकभाषा का प्रयोग किया। उनकी भाषा सरल और लोगों के दिल तक पहुँचने वाली है।
- सधुक्कड़ी भाषा – कबीर एक साधु थे, और उनकी भाषा में एक रहस्यमयता होती है। वह कहते थे, “संतों की भाषा अटपटी, चटपट लखै न कोय,” यानी उनकी भाषा में एक विशिष्ट प्रकार की अभिव्यक्ति होती है, जो सीधे-सादे शब्दों में नहीं समझी जा सकती। इस कारण उनकी भाषा को सधुक्कड़ी कहा जाता है।
- खिचड़ी भाषा – कबीर समाज में ज्ञान फैलाने के लिए यात्रा करते रहते थे। उनके संपर्क में कई भाषाएँ आईं, जिससे उनकी भाषा में विभिन्न भाषाओं का मिश्रण पाया जाता है। इसे विद्वान “खिचड़ी भाषा” के रूप में पहचानते हैं।
- भाव प्रधान भाषा – कबीर की साखियों में शब्दों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण उनके भाव होते हैं। इन छोटी साखियों में गहरे अर्थ और भावनाएँ निहित होती हैं, जो सीधे दिल को प्रभावित करती हैं।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
- जिरह भुजंगम तन बसै, मंत्र न लागे कोइ
भावार्थ: जब व्यक्ति का अहंकार (जिरह) बहुत बढ़ जाता है, तो वह किसी भी साधना या मंत्र से प्रभावित नहीं होता। यहां “भुजंगम तन” से तात्पर्य है एक ऐसा शरीर जिसमें अहंकार का वास हो, और “मंत्र न लागे कोइ” का अर्थ है कि ऐसा व्यक्ति किसी भी धार्मिक या आध्यात्मिक साधना से लाभान्वित नहीं हो सकता। - कस्तूरी कुंडलि बसें, मृग ढूँढै यन मांहि
भावार्थ: जैसे कस्तूरी (मृग की गंध) उसके अपने शरीर में छुपी रहती है, और मृग इसे बाहरी वातावरण में ढूँढता है, वैसे ही व्यक्ति अपनी आत्मा की शांति और सुख की तलाश बाहर करता है, जबकि वह उसे भीतर ही पाता है। यह उदाहरण आत्मा की खोज को बाहरी संसार के बजाय अपने भीतर खोजने की आवश्यकता को दर्शाता है। - जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि
भावार्थ: जब व्यक्ति अहंकार और ‘मैं’ की भावना में बसा होता है, तो वह ईश्वर को अनुभव नहीं कर पाता। लेकिन जब वह ‘मैं’ और ‘मेरा’ की भावना से मुक्त हो जाता है, तब वह ईश्वर को अपनी अंतरात्मा में महसूस करता है। यह शेर साधना और आत्मज्ञान के महत्व को दर्शाता है। - पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई
भावार्थ: केवल किताबों का अध्ययन करके कोई पंडित या ज्ञानी नहीं बनता। यदि व्यक्ति केवल पुस्तकें पढ़ता है और उनका गहराई से अध्ययन नहीं करता, तो वह असली ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। यह दोहा शिक्षा और वास्तविक ज्ञान के बीच अंतर को व्यक्त करता है।
भाषा अध्ययन
1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण– जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालों, तास|
उत्तर 1:- पाठ में आए शब्दों के प्रचलित रूप-
शब्द: प्रचलित रूप
जिवै जीना
औरन दूसरे
माँहि में
देख्या देखा
भुवंगम भुजंग/ सांप
नेड़ा निकट
आँगणि आंगन
साबण साबुन
मुवा मरा हुआ
पीव प्रिय
जालों जलना
तास उसका
योग्यता विस्तार
1. ‘साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती हैं’ तथा ‘व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’ – इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।
उत्तर 1: इन दो विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित करने के लिए आप निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार कर सकते हैं:
- “साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती हैं”
- साधु का अर्थ: साधु व्यक्ति वह है जो धार्मिक या नैतिक जीवन जीने का प्रयास करता है, और उसके जीवन में तप, संयम, और आत्मविवेक की प्रमुखता होती है।
- निंदा का मतलब: निंदा का अर्थ है किसी की आलोचना या बुराई करना। यह आमतौर पर व्यक्ति के स्वभाव और कार्यों को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत करने का तरीका होता है।
- सहन करने की आवश्यकता: साधु के लिए निंदा सहन करना एक कठिन लेकिन महत्वपूर्ण गुण है। जब लोग साधु के बारे में नकारात्मक बातें कहते हैं, तो साधु को अपने संयम को बनाए रखना होता है। इसका उद्देश्य विनयशीलता (नम्रता और विनम्रता) को बढ़ाना होता है।
- विनयशीलता का महत्व: विनयशील व्यक्ति को सम्मान और आशीर्वाद मिलता है, क्योंकि वह निंदा और आलोचना को शांति से सहन करता है। यह गुण हमें जीवन में आंतरिक शांति और संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
परिचर्चा के लिए प्रश्न:
- क्या निंदा सहन करना हमेशा सही है? क्यों?
- आप अपने जीवन में निंदा सहन करने की स्थिति में खुद को कैसे महसूस करते हैं?
- “व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए”
- मीठी वाणी का अर्थ: मीठी वाणी का मतलब है, ऐसी भाषा बोलना जो न केवल सुरीली और सजीव हो, बल्कि जो दूसरे व्यक्ति को आराम, शांति और स्नेह का अहसास कराए।
- कल्याणकारी वाणी का महत्व: कल्याणकारी वाणी से तात्पर्य है, ऐसी बातों का प्रयोग करना जो दूसरों के भले के लिए हो। यह वाणी सकारात्मक, प्रेरणादायक और उपयोगी होनी चाहिए।
- मीठी वाणी के लाभ: मीठी और सहायक वाणी दूसरों को प्रभावित करती है, रिश्तों को मजबूत करती है और सामाजिक माहौल को सौम्य बनाती है। इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व में भी निखार आता है।
- वाणी से संबंध: वाणी का व्यक्ति के जीवन में गहरा प्रभाव होता है। मीठी वाणी से व्यक्ति को न केवल व्यक्तिगत सुख मिलता है, बल्कि यह समाज में भी शांति और सहयोग की भावना को बढ़ावा देती है।
परिचर्चा के लिए प्रश्न:
- क्या कभी मीठी वाणी से समस्या को सुलझाया जा सकता है?
- क्या यह हमेशा संभव है कि हम हर परिस्थिति में मीठी वाणी का प्रयोग करें? क्यों?
संक्षेप में: इन दो विषयों पर परिचर्चा करते समय, विद्यार्थियों को यह समझाने की कोशिश करें कि साधु के जीवन में विनयशीलता और मीठी वाणी के माध्यम से किस प्रकार का मानसिक शांति, संतुलन और समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस तरह की चर्चा विद्यार्थियों को सिखाती है कि शब्दों का सही प्रयोग और संयमित व्यवहार जीवन में सफलता और शांति ला सकता है।
2. कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर 2: कस्तूरी एक प्रकार की सुगंधित चिट्ठी (सुगंधित पदार्थ) है जो मुख्य रूप से कस्तूरी मृग (Musk Deer) से प्राप्त होती है। यह एक प्राकृतिक और मूल्यवान सुगंध है जिसका उपयोग प्राचीन काल से ही इत्र, औषधि और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। कस्तूरी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
- कस्तूरी क्या है?
- कस्तूरी एक गाढ़ी, गहरे रंग की, तेल जैसी वस्तु है जो मुख्य रूप से कस्तूरी मृग की सुगंधित ग्रंथि से प्राप्त होती है। यह एक अत्यंत सुगंधित पदार्थ है जिसका प्रयोग इत्र और औषधियों में किया जाता है।
- कस्तूरी का रंग गहरा भूरा से लेकर काला होता है, और इसकी सुगंध अत्यधिक प्रबल और आकर्षक होती है। यह प्राकृतिक रूप से मृगों के शरीर में एक छोटी सी ग्रंथि में उत्पन्न होती है।
- कस्तूरी मृग (Musk Deer)
- कस्तूरी मृग एक छोटा, घास खाने वाला पशु है जो हिमालयी क्षेत्र, मध्य एशिया और उत्तरपूर्वी भारत में पाया जाता है। इस मृग की ग्रंथि में कस्तूरी उत्पन्न होती है।
- यह मृग अपनी ग्रंथि से कस्तूरी को स्रावित करता है, जिसे संग्रहित कर विभिन्न उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
- कस्तूरी मृग की संख्या में कमी आने के कारण, यह प्रजाति संरक्षण सूची में शामिल है, और इसके शिकार पर पाबंदी है।
- कस्तूरी का उपयोग
- इत्र और सौंदर्य प्रसाधन: कस्तूरी का उपयोग इत्र (perfumes) में किया जाता है, क्योंकि इसकी खुशबू लंबे समय तक बनी रहती है। यह इत्रों को एक अद्वितीय और आकर्षक सुगंध प्रदान करती है।
- आयुर्वेद और औषधि: कस्तूरी को आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग तनाव कम करने, शारीरिक ताकत बढ़ाने और मानसिक शांति पाने के लिए किया जाता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक उपयोग: कस्तूरी का उपयोग हिन्दू धर्म के धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता है, जैसे पूजा सामग्री में इसके इस्तेमाल के लिए। यह एक पवित्र वस्तु मानी जाती है।
- कस्तूरी की उत्पत्ति और इतिहास
- कस्तूरी का इतिहास बहुत पुराना है और यह प्राचीन सभ्यताओं में भी एक मूल्यवान वस्तु रही है। इसके उपयोग के बारे में प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
- कस्तूरी का प्रयोग भारत, चीन, मध्य एशिया, और पश्चिमी देशों में भी हुआ है। इसे व्यापार के माध्यम से इन क्षेत्रों में फैलाया गया था।
- कस्तूरी के प्रकार
- प्राकृतिक कस्तूरी: यह असल कस्तूरी मृग से प्राप्त होती है। यह काफी महंगी होती है और अब इसके प्रयोग पर प्रतिबंध भी है, क्योंकि मृगों की संख्या घट रही है।
- सिंथेटिक कस्तूरी: आजकल, कस्तूरी के कृत्रिम रूप भी उपलब्ध हैं, जो प्राकृतिक कस्तूरी की सुगंध का अनुकरण करते हैं। यह मुख्य रूप से इत्र और सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयोग किया जाता है।
- कस्तूरी के लाभ
- स्वास्थ्य लाभ: कस्तूरी में एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। यह रक्त परिसंचरण को सुधारने में मदद करता है और शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करता है।
- मानसिक शांति: इसकी गहरी और शांतिदायक सुगंध मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ावा देती है। यह तनाव कम करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
कुल मिलाकर, कस्तूरी एक अद्वितीय और मूल्यवान पदार्थ है जो न केवल पारंपरिक चिकित्सा और सौंदर्य प्रसाधनों में बल्कि संस्कृति और धर्म में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
परियोजना कार्य
1. मीठी वाणी/ बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर 1: यहां कुछ मीठी वाणी और ईश्वर प्रेम संबंधी दोहे दिए गए हैं, जिन्हें आप भित्ति पत्रिका पर लिख सकते हैं:
- मीठी वाणी संबंधी दोहे:
- “मीठी वाणी से जीते, दिलों में जगह बनाएं,
शांति, प्रेम और स्नेह का संदेश हम लाएं।” - “वाणी की शक्ति बड़ी, जो दिलों को जोड़े,
सच्चे शब्दों से हर दिल में प्रेम रौंदे।” - “मीठी वाणी से सजा संसार हर राह,
बोले जो प्यारी, दिलों में बसी चाह।”
- “मीठी वाणी से जीते, दिलों में जगह बनाएं,
- ईश्वर प्रेम संबंधी दोहे:
- “ईश्वर प्रेम में लहराए, भक्ति का अनुपम सुख,
सच्ची श्रद्धा से मिले, जीवन में अनमोल मुक्ति।” - “ईश्वर से नाता जोड़, प्रेम से सच्ची बंधन,
हर दिल में बसी प्रेम, ईश्वर का दिव्य कण।” - “ईश्वर का ध्यान करो, भक्ति से सच्चे सच्चे,
प्रेम में डूबा जीवन, संसार से ऊँचा उठे।”
- “ईश्वर प्रेम में लहराए, भक्ति का अनुपम सुख,
आप इन दोहों को भित्ति पत्रिका पर चार्ट पर लिखकर आकर्षक रूप से प्रदर्शित कर सकते हैं।
2. कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।
उत्तर 2: कबीर की साखियाँ उनके अद्भुत जीवन दर्शन और गहरे आध्यात्मिक संदेशों से भरपूर होती हैं। अंत्याक्षरी में इनका प्रयोग करते हुए हम कबीर की कुछ प्रसिद्ध साखियाँ याद कर सकते हैं, जैसे:
- “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा न कोई।”
यह साखी हमें आत्म-निरीक्षण की प्रेरणा देती है और सिखाती है कि दुनिया में सबसे बड़ा दुश्मन हमारा खुद का मन होता है। - “हिरनी की तरह दौड़ते फिरते हो, क्या समझते हो तुम।
तुम्हारा अपना घर यहाँ, क्या समझते हो तुम।”
यह साखी हमें जीवन की असलियत से परिचित कराती है कि हम जहाँ हैं, वही असली घर है।
इन साखियों का उपयोग अंत्याक्षरी में कर सकते हैं, जिसमें एक विद्यार्थी एक शब्द से शुरुआत करता है और दूसरे विद्यार्थी उस शब्द से संबंधित साखी को जोड़ता है।
पाठ 1: कबीर (साखी) प्रश्न उत्तर
Updated Solution 2024-2025 Updated Solution 2024-2025
पाठ 1: कबीर (साखी) पर आधारित अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न–उत्तर, भावार्थ
कबीर की साखी पर आधारित प्रत्येक दोहे का भावार्थ
1. ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ।।
भावार्थ: ऐसी मधुर और विनम्र वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन का अहंकार समाप्त हो जाए। ऐसी वाणी न केवल स्वयं को शांत रखती है बल्कि दूसरों को भी सुख देती है। कबीर कहते हैं कि शब्दों का चुनाव ऐसा हो जो दिल को छू जाए और किसी का मन न दुखाए।
2. कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूंढे बन माहिं।
ऐसै घटि-घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिं।।
भावार्थ: कस्तूरी हिरन की नाभि में होती है, लेकिन वह उसे जंगल में ढूंढता फिरता है। इसी प्रकार राम (ईश्वर) प्रत्येक जीव के भीतर ही बसे हैं, परंतु लोग उन्हें बाहर खोजते हैं। कबीर यह संदेश देते हैं कि आत्मा के भीतर झाँको, वहीं प्रभु का निवास है।
3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिं।।
भावार्थ: जब तक “मैं” यानी अहंकार था, तब तक ईश्वर का अनुभव नहीं हुआ। जब अहंकार समाप्त हुआ, तब ईश्वर प्रकट हो गए। जैसे अंधकार दीपक के प्रकाश से मिट जाता है, वैसे ही आत्मज्ञान से मन का अज्ञान मिटता है।
4. सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरू रोवै।।
भावार्थ: संसार का हर प्राणी भोजन करता है और सुखपूर्वक सोता है, लेकिन कबीर कहते हैं कि वे दुखी हैं क्योंकि वे सत्य की खोज में जागते और रोते रहते हैं। यह दोहा उस साधक की पीड़ा को दर्शाता है जो आत्मबोध की तड़प में जागृत रहता है।
5. बिरह भुजंगम तन बसे, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।
भावार्थ: प्रभु से वियोग रूपी नाग शरीर में बस जाता है, जिस पर कोई भी मंत्र काम नहीं करता। प्रभु से बिछड़ने वाला जीव जीते हुए भी मृत समान होता है, और यदि जीवित भी रहे तो विक्षिप्त हो जाता है। कबीर इस वियोग की तीव्र पीड़ा को दर्शाते हैं।
6. संत निकट राखिए, आंगन उपटी बँधाय।
बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करै सुभाय।।
भावार्थ: संतों का साथ आंगन में तुलसी के पौधे की तरह होना चाहिए। वे बिना साबुन और पानी के भी मन को निर्मल कर देते हैं। उनका संग आत्मा को पवित्र करता है, उनके शब्द जीवन में नई दिशा लाते हैं।
7. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोइ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होइ।।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि संसार भर की किताबें पढ़ते-पढ़ते लोग मर गए, पर कोई सच्चा पंडित न बन पाया। जो “प्रेम” के ढाई अक्षर पढ़ता और समझता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। प्रेम ही सच्चा ज्ञान है।
8. हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।
भावार्थ: कबीर कहते हैं कि मैंने अपने भीतर के मोह-माया का घर स्वयं जला दिया और वैराग्य (त्याग) का मशाल हाथ में ले लिया है। अब मैं उन लोगों के भीतर की अज्ञानता को जलाऊँगा, जो मेरे साथ सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहें।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: ‘साखी’ शब्द का क्या तात्पर्य है और संत कबीर के अनुभव ज्ञान की इसमें क्या भूमिका है?
उत्तर: ‘साखी’ शब्द ‘साक्षी’ का तद्भव रूप है, जिसका संबंध प्रत्यक्ष ज्ञान से है। संत परंपरा में अनुभवजन्य ज्ञान को शास्त्रीय ज्ञान से अधिक महत्त्व दिया गया है। कबीर एक ऐसे संत थे जिन्होंने जीवन के हर पहलू का अनुभव कर उसे अपने दोहों में ढाला। उनका अनुभव क्षेत्र व्यापक था। उन्होंने अनेक स्थानों का भ्रमण कर जीवन के सत्य को पहचाना। यही प्रत्यक्ष अनुभव ‘साखियों’ के माध्यम से शिष्य को प्रदान किया गया है। उनके दोहे केवल शब्द नहीं बल्कि जीवन दर्शन का सार हैं।
प्रश्न 2: कबीर की भाषा की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। उन्होंने किन भाषाओं और बोलियों का प्रयोग किया?
उत्तर: कबीर की भाषा बहुभाषीय और जनमानस के अनुकूल थी। उन्होंने अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी जैसी लोकभाषाओं के शब्दों को अपनी रचनाओं में समाहित किया। इस मिश्रणीय शैली को ‘पचमेल खिचड़ी’ कहा गया है। साथ ही, उनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है, जो साधुओं द्वारा प्रयुक्त बोली थी। इस भाषा शैली ने कबीर की साखियों को व्यापक जनता तक पहुँचाने में सहायता की। यही कारण है कि उनकी रचनाएँ आज भी सरलता से समझी जाती हैं और जनमानस को प्रभावित करती हैं।
प्रश्न 3: कबीर द्वारा रचित साखियों में ‘सत्य’ और ‘गुरु’ की भूमिका को कैसे समझाया गया है?
उत्तर: कबीर की साखियाँ गुरु के माध्यम से प्राप्त अनुभवज्ञान को सत्य की साक्षी के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनके अनुसार, गुरु ही वह दीपक है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाता है। साखियों में यह बताया गया है कि जब तक ‘मैं’ का भाव था, तब तक ईश्वर नहीं मिला, और जब ‘मैं’ मिट गया, तभी ईश्वर का प्रकाश दिखाई दिया। इसलिए कबीर के दोहों में आत्म-अहंकार का त्याग, गुरु की महिमा, और सत्य की अनुभूति के विषय अत्यंत प्रभावशाली रूप में चित्रित होते हैं।
प्रश्न 4: कबीर ने सामाजिक व्यवहार और भाषा के संयम को अपनी साखियों में कैसे व्यक्त किया है?
उत्तर: कबीर का मानना था कि वाणी का उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए। उनकी साखी “ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ…” में यह स्पष्ट होता है कि मधुर वाणी से स्वयं का मन शांत होता है और दूसरों को भी सुख की अनुभूति होती है। कबीर ने शब्दों की ताकत और उनके प्रभाव को बखूबी समझा था। वे मानते थे कि कटु शब्द संबंधों में दरार डाल सकते हैं, जबकि सौम्य वाणी समाज में सौहार्द बना सकती है। उनकी वाणी जीवन जीने की दिशा दिखाती है।
प्रश्न 5: कबीर ने ईश्वर के सर्वव्यापक रूप को किस प्रकार अपनी साखियों में व्यक्त किया है?
उत्तर: कबीर ईश्वर को घट-घट में व्याप्त मानते हैं। उनकी प्रसिद्ध साखी “कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढे बन माहि..” इस विचार को प्रकट करती है। जैसे मृग अपने भीतर मौजूद कस्तूरी को बाहर ढूंढ़ता है, वैसे ही मानव भी अपने अंदर स्थित परमात्मा को बाहरी मंदिरों में खोजता है। कबीर ने इस साखी के माध्यम से यह सिखाया कि ईश्वर किसी एक स्थान या मूर्ति में सीमित नहीं है, बल्कि वह प्रत्येक प्राणी और कण-कण में विद्यमान है।
प्रश्न 6: कबीर के अनुसार सच्चा पंडित कौन होता है? उनकी शिक्षा से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर: कबीर के अनुसार सच्चा पंडित वह नहीं जो केवल पोथियाँ पढ़कर ज्ञान का ढोंग करता है, बल्कि वह है जो ईश्वर और प्रेम के मार्ग को समझता और अपनाता है। उनकी साखी “पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ…” इस संदेश को स्पष्ट करती है। कबीर शास्त्रों के रटने को व्यर्थ मानते हैं यदि वह जीवन में उपयोग न आए। वे कहते हैं कि अनुभव से प्राप्त प्रेम और भक्ति ही वास्तविक ज्ञान है। यही शिक्षा आत्मिक विकास की दिशा में मार्गदर्शन करती है।
प्रश्न 7: कबीर के अनुसार संसार में सुख और दुःख की वास्तविकता क्या है?
उत्तर: कबीर की दृष्टि में संसारिक सुख भ्रम है। उनकी साखी “सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै…” इस बात को दर्शाती है कि दुनिया खाने-पीने और सोने को सुख मानती है, परंतु कबीर जैसे भक्त को ईश्वर की अनुपस्थिति में असली दुःख अनुभव होता है। उनका दुःख आध्यात्मिक है, जो उन्हें ईश्वर से वियोग में रुलाता है। कबीर के लिए सच्चा सुख केवल ईश्वर की प्राप्ति और भक्ति में है, न कि भौतिक वस्तुओं में।
प्रश्न 8: कबीर द्वारा दी गई आत्मज्ञान की शिक्षा का महत्व वर्तमान समय में कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर: कबीर का आत्मज्ञान केवल किसी युग विशेष तक सीमित नहीं है। उन्होंने जो शिक्षा दी, वह आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। जब वे कहते हैं “जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि…” तो वे आत्म-अहंकार के त्याग की बात करते हैं। आज के समय में जब व्यक्ति आत्मकेंद्रित हो गया है, तब कबीर की शिक्षा हमें विनम्रता, भक्ति, और सच्चे ज्ञान की ओर प्रेरित करती है। यह शिक्षाएँ व्यक्ति को आत्मचिंतन और आत्मविकास का मार्ग दिखाती हैं।
प्रश्न 9: कबीर की दृष्टि में प्रेम और विरह का आध्यात्मिक स्वरूप क्या है?
उत्तर: कबीर के लिए प्रेम केवल सांसारिक भावना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा है। उनकी साखी “बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ…” बताती है कि ईश्वर से वियोग का दुःख ऐसा है जैसे शरीर में विषैला सर्प समाया हो। यह विरह किसी सामान्य प्रेमी का नहीं, बल्कि ईश्वर के साथ गहरे आत्मिक संबंध का प्रतीक है। कबीर कहते हैं कि राम-वियोग में जीवित रहना भी संभव नहीं। यह शिक्षा दर्शाती है कि ईश्वर प्रेम अत्यंत तीव्र और प्रबल होता है।
प्रश्न 10: कबीर का जीवन-दर्शन आधुनिक समाज के लिए कैसे प्रेरणास्रोत है?
उत्तर: कबीर का जीवन-दर्शन एक आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार की प्रेरणा है। उन्होंने जाति-पांति, धार्मिक आडंबर, और बाह्याचारों का विरोध करते हुए प्रेम, सहिष्णुता और अनुभवज्ञान का मार्ग अपनाने को कहा। उनकी शिक्षाएँ आज के तनावपूर्ण, भौतिकतावादी और अलगाव से ग्रस्त समाज को आत्मज्ञान, सह-अस्तित्व, और सच्ची मानवता की ओर प्रेरित करती हैं। कबीर का विचार “हम घर जाल्या आपणा..” आत्मोत्सर्ग और समर्पण का प्रतीक है, जो किसी भी समाज को बेहतर बना सकता है।
प्रश्न 11: कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ और ‘पचमेल खिचड़ी’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर: कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह संतों और साधुओं की लोकभाषा थी, जो सहज, सरल और जनसमूह द्वारा समझे जाने योग्य थी। इसे ‘पचमेल खिचड़ी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें अवधी, ब्रज, भोजपुरी, पंजाबी और राजस्थानी जैसी विभिन्न भाषाओं के शब्दों का मेल है। यह भाषा संयोजन कबीर की व्यापक यात्राओं और विभिन्न क्षेत्रों के अनुभवों का परिणाम है, जिससे उनकी वाणी सभी वर्गों तक आसानी से पहुँची।
प्रश्न 12: कबीर के अनुसार ज्ञान और पोथियों का संबंध क्या है?
उत्तर: कबीर का मानना था कि केवल पोथियाँ पढ़ने से कोई विद्वान या ज्ञानी नहीं बनता। वे साखी “पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा..” के माध्यम से स्पष्ट करते हैं कि ग्रंथों को रट लेने से जीवन का सत्य नहीं मिलता। सच्चा ज्ञान अनुभव और आत्मबोध से प्राप्त होता है। कबीर पांडित्य से अधिक अनुभूति पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर-प्रेम और जीवन की सच्चाई को समझना ही सच्चा ज्ञान है।
प्रश्न 13: कबीर की दृष्टि में अहंकार (अहम्) त्याग का क्या महत्व है?
उत्तर: कबीर के अनुसार आत्मज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अहंकार होता है। उनकी साखी “जब मैं था तब हरि नहीं..” इस भावना को उजागर करती है। कबीर मानते हैं कि जब तक व्यक्ति ‘मैं’ के भाव में डूबा रहता है, तब तक ईश्वर प्राप्ति संभव नहीं। लेकिन जैसे ही वह अपना अहं त्याग देता है, ईश्वर का प्रकाश उस पर प्रकट होता है। उनका दर्शन ‘अहम्’ को मिटा कर ‘परमात्मा’ में लीन होने का है।
प्रश्न 14: कबीर की दृष्टि में सच्चा सुख क्या है और वह कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: कबीर के अनुसार सच्चा सुख केवल ईश्वर की भक्ति में है, न कि भौतिक सुविधाओं में। उनकी साखी “सुखिया सब संसार है..” इस विषय को दर्शाती है। लोग खाने-पीने और आराम को सुख मानते हैं, परंतु कबीर जैसे साधक के लिए सच्चा सुख प्रभु की निकटता में है। ईश्वर-वियोग में वे दुखी रहते हैं, जागते हैं और रोते हैं। इस प्रकार कबीर बताते हैं कि आध्यात्मिक सुख ही शाश्वत और वास्तविक है।
प्रश्न 15: कबीर द्वारा प्रस्तुत ‘बिरह’ की भावना का आध्यात्मिक पक्ष स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीर के लिए ‘बिरह’ केवल सांसारिक वियोग नहीं, बल्कि ईश्वर से जुदाई की पीड़ा है। उनकी साखी “बिरह भुवंगम तन बसै..” में यह पीड़ा स्पष्ट झलकती है। कबीर मानते हैं कि राम-वियोग की अग्नि में भक्त जलता रहता है और कोई भी साधारण उपाय इस पीड़ा को नहीं मिटा सकता। यह विरह प्रेम की पराकाष्ठा है, जिसमें भक्त का हृदय ईश्वर से एकाकार होने को तड़पता है। यह आध्यात्मिक प्रेम की चरम अभिव्यक्ति है।
प्रश्न 16: कबीर के अनुसार वाणी का क्या प्रभाव पड़ता है? उपयुक्त साखी के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: कबीर वाणी को अत्यंत प्रभावशाली मानते हैं। उनकी साखी “ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ..” इस विचार को उजागर करती है। वे कहते हैं कि वाणी में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह स्वयं को शांत करे और दूसरों को सुख दे। कटु वाणी संबंधों को तोड़ सकती है जबकि मधुर वाणी मेल-जोल और शांति का मार्ग खोलती है। कबीर की यह शिक्षा आज के सामाजिक वातावरण में विशेष प्रासंगिक है।
प्रश्न 17: कबीर की दृष्टि में ‘गुरु’ का क्या स्थान है?
उत्तर: कबीर के अनुसार गुरु ही वह दीपक है जो अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाता है। उन्होंने अनुभव ज्ञान को अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया है जो केवल गुरु से ही प्राप्त हो सकता है। गुरु न केवल आध्यात्मिक ज्ञान देता है, बल्कि शिष्य को सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव भी कराता है। कबीर की अनेक साखियाँ गुरु की महिमा का बखान करती हैं, जैसे: “गुरु गोविंद दोऊ खड़े..”। यह स्पष्ट करता है कि उनके लिए गुरु ईश्वर से भी बढ़कर है।
प्रश्न 18: कबीर ने ‘राम’ को किस रूप में स्वीकार किया है? क्या वह कोई विशेष देवता हैं?
उत्तर: कबीर के ‘राम’ किसी विशेष देवता या मूर्त रूप में नहीं हैं, बल्कि वह निर्गुण ब्रह्म हैं — जो निराकार, सर्वव्यापी और अनुभवगम्य हैं। वे ‘राम’ को घट-घट में व्याप्त चेतना के रूप में देखते हैं। उनकी साखी “ऐसैं घटि घटि राम है, दुनियाँ देखै नाहिं..” इस अवधारणा को दर्शाती है। कबीर ने धार्मिक सीमाओं से परे जाकर ‘राम’ को चेतना, प्रेम और सत्य के प्रतीक रूप में अपनाया है।
प्रश्न 19: कबीर की दृष्टि में आत्मजागरण और गृहत्याग का क्या संबंध है?
उत्तर:कबीर का गृहत्याग प्रतीकात्मक है। उनकी साखी “हम घर जाल्या आपणा..” बताती है कि उन्होंने अपने अहं, वासनाओं और माया के घर को जलाकर आत्मजागरण का पथ चुना। यह गृहत्याग भौतिक घर छोड़ने से अधिक, आंतरिक विकारों और मोह से मुक्ति की ओर संकेत करता है। कबीर का यह विचार बताता है कि आध्यात्मिक विकास के लिए आत्म-परिवर्तन आवश्यक है, न कि केवल बाह्य सन्यास।
प्रश्न 20: कबीर के विचारों का आज के शिक्षित समाज पर क्या प्रभाव हो सकता है?
उत्तर: कबीर के विचार आज के शिक्षित समाज को आत्ममूल्यांकन, विनम्रता और मानवीय संवेदना की दिशा में प्रेरित कर सकते हैं। जब उन्होंने कहा “पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा..” तो वे यह बताना चाहते थे कि केवल डिग्रियाँ और पुस्तक ज्ञान पर्याप्त नहीं, बल्कि अनुभव और नैतिकता भी आवश्यक हैं। आज के प्रतिस्पर्धी युग में कबीर का जीवन-दर्शन हमें आत्मिक शांति, सामाजिक समरसता और आंतरिक संतुलन की राह दिखा सकता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: ‘साखी’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘साखी’ शब्द ‘साक्षी’ का तद्भव रूप है, जिसका अर्थ है प्रत्यक्ष ज्ञान। यह वह ज्ञान है जो गुरु शिष्य को अपने अनुभव से देता है। संत साहित्य में साखी दोहे के रूप में होती है और उसमें जीवन की गहरी शिक्षाएँ होती हैं।
प्रश्न 2: कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर: कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ इसलिए कहा गया है क्योंकि यह संतों और साधुओं द्वारा प्रयुक्त सरल, सहज एवं मिश्रित भाषा थी। इसमें अवधी, भोजपुरी, राजस्थानी, ब्रज और पंजाबी शब्दों का समावेश था, जिससे यह आम लोगों को आसानी से समझ में आती थी।
प्रश्न 3: कबीर किस प्रकार का ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण मानते थे?
उत्तर: कबीर अनुभव आधारित ज्ञान को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे। वे शास्त्रों और पोथियों के रटे-रटाए ज्ञान के बजाय आत्मानुभव और सत्य के साक्षात बोध को ज्ञान का सही स्वरूप मानते थे, जिसे केवल गुरु की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 4: कबीर ने अहंकार के त्याग को क्यों आवश्यक बताया?
उत्तर: कबीर के अनुसार जब तक व्यक्ति में ‘मैं’ का भाव है, तब तक ईश्वर की अनुभूति नहीं हो सकती। ‘जब मैं था तब हरि नहीं’ साखी के माध्यम से वे बताते हैं कि अहंकार को त्याग कर ही परमात्मा का प्रकाश भीतर अनुभव किया जा सकता है।
प्रश्न 5: कबीर के अनुसार वाणी कैसी होनी चाहिए?
उत्तर: कबीर कहते हैं कि वाणी ऐसी होनी चाहिए जो मन का अहंकार दूर करे, स्वयं को शांत रखे और दूसरों को सुख पहुँचाए। मधुर वाणी से संबंध सुधरते हैं जबकि कटु वाणी से मन में कटुता आती है। यह समाज में प्रेम और शांति बढ़ाती है।
प्रश्न 6: ‘बिरह’ की भावना कबीर की साखियों में कैसे प्रकट होती है?
उत्तर: कबीर की साखियों में ‘बिरह’ की भावना ईश्वर-वियोग की पीड़ा के रूप में प्रकट होती है। वे कहते हैं कि राम-वियोग से तन में विष का अनुभव होता है और कोई भी साधारण उपाय उस पीड़ा को नहीं मिटा सकता। यह आध्यात्मिक प्रेम की चरम अवस्था है।
प्रश्न 7: कबीर राम को किस रूप में मानते हैं?
उत्तर: कबीर राम को किसी विशेष देवता के रूप में नहीं, बल्कि सर्वव्यापक और निराकार ब्रह्म के रूप में मानते हैं। वे कहते हैं कि राम हर प्राणी के भीतर हैं, लेकिन अज्ञान के कारण संसार उन्हें नहीं देख पाता। राम उनके लिए चेतना का प्रतीक हैं।
प्रश्न 8: कबीर के अनुसार सच्चा पंडित कौन है?
उत्तर: कबीर के अनुसार सच्चा पंडित वह है जो आत्मज्ञान और परमात्मा के प्रेम को समझता है। वे कहते हैं कि पोथियाँ पढ़ने से कोई पंडित नहीं बनता, बल्कि जिसने ईश्वर का प्रेम जाना है वही सच्चा ज्ञानी है। यह आंतरिक अनुभूति से प्राप्त होता है।
प्रश्न 9: कबीर की वाणी का समाज में क्या प्रभाव हो सकता है?
उत्तर: कबीर की वाणी समाज को सत्य, प्रेम और विनम्रता का मार्ग दिखाती है। उनकी शिक्षाएँ धर्म, जाति और पाखंड से ऊपर उठने की प्रेरणा देती हैं। समाज में समरसता और सद्भाव स्थापित करने के लिए उनकी वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
प्रश्न 10: कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता क्या है?
उत्तर: कबीर की साखियों की भाषा में सहजता, सरसता और जनमानस से जुड़ाव है। इसमें कई भाषाओं का मिश्रण है, जिससे इसे ‘पचमेल खिचड़ी’ कहा गया। यह भाषा सीधी और प्रभावशाली है, जो गहरे आध्यात्मिक संदेशों को सरल ढंग से प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 11: कबीर के अनुसार सांसारिक सुख क्या है?
उत्तर: कबीर कहते हैं कि संसार सुख में है क्योंकि वह खाता-पीता और सोता है, परंतु असल में वह अज्ञान में है। वास्तविक सुख ईश्वर के निकट होने में है। सांसारिक सुख क्षणिक हैं, जबकि आध्यात्मिक सुख स्थायी और गहरा होता है।
प्रश्न 12: कबीर के अनुसार आत्मज्ञान कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: कबीर के अनुसार आत्मज्ञान गुरु के माध्यम से ही संभव है। शास्त्र और पोथियाँ केवल बाहरी ज्ञान देती हैं, परंतु आत्मा का बोध गुरु की कृपा से होता है। यह ज्ञान अनुभवजन्य होता है, जिसमें सत्य का साक्षात्कार होता है।
प्रश्न 13: कबीर के अनुसार सच्चा साधक कौन है?
उत्तर: कबीर के अनुसार सच्चा साधक वही है जो अपने अंदर की वासनाओं को जला दे, मोह-माया त्याग दे और ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाए। वह व्यक्ति जो अपने ‘घर’ अर्थात अहंकार को जला देता है, वही ईश्वर की राह पर आगे बढ़ता है।
प्रश्न 14: कबीर की वाणी में धार्मिक पाखंड का विरोध कैसे दिखता है?
उत्तर: कबीर ने धार्मिक पाखंड, मूर्तिपूजा और बाह्य आडंबर का तीव्र विरोध किया। वे कहते हैं कि ईश्वर मंदिर-मस्जिद में नहीं, बल्कि प्रत्येक जीव के भीतर है। उनकी वाणी मनुष्य को भीतर झाँकने और आत्मा से साक्षात्कार करने की प्रेरणा देती है।
प्रश्न 15: कबीर का साहित्य किस छंद में लिखा गया है?
उत्तर: कबीर की ‘साखियाँ’ दोहा छंद में लिखी गई हैं। दोहा छंद का लक्षण 13 और 11 मात्राओं का क्रम होता है। यह छंद शैली छोटी होते हुए भी अत्यंत प्रभावशाली होती है और जीवन के गहन सत्य को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 16: कबीर के अनुसार गुरु का महत्व क्या है?
उत्तर: कबीर के अनुसार गुरु अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है। वह शिष्य को आत्मसाक्षात्कार की राह दिखाता है। गुरु की कृपा से ही ईश्वर की अनुभूति संभव है। इसलिए कबीर ने गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया है।
प्रश्न 17: कबीर की वाणी की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर: कबीर की वाणी में सादगी, स्पष्टता और प्रभावशीलता है। उन्होंने जटिल आध्यात्मिक विचारों को आम भाषा में सरल ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी वाणी में उपदेशात्मकता है जो पाठकों को आत्मनिरीक्षण और सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
प्रश्न 18: कबीर की दृष्टि में पढ़ा-लिखा व्यक्ति कौन है?
उत्तर: कबीर के अनुसार सच्चा पढ़ा-लिखा वही है जिसने ईश्वर के प्रेम को पहचाना है। वे कहते हैं कि पोथियाँ पढ़ने वाले तो बहुत हैं, परंतु जिसने प्रभु का नाम हृदय से जपा है वही ज्ञानी है। बाहरी ज्ञान अधूरा है जब तक आत्मज्ञान न हो।
प्रश्न 19: कबीर की वाणी का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर: कबीर की वाणी का प्रमुख उद्देश्य मानव को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करना था। उन्होंने समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया तथा ईश्वर की सच्ची भक्ति और प्रेम का संदेश दिया। उनका साहित्य जीवन को सही दिशा देने वाला है।
प्रश्न 20: कबीर की साखियों का आज के समाज में क्या महत्व है?
उत्तर: कबीर की साखियाँ आज के समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। वे हमें नैतिकता, विनम्रता, प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता और आत्मचिंतन के लिए कबीर की शिक्षाएँ आज भी मार्गदर्शक हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1. कबीर किस प्रकार के ज्ञान को महत्व देते हैं?
A. पोथी ज्ञान
B. अनुभवजन्य ज्ञान
C. तर्क ज्ञान
D. लोक परंपरा
उत्तर: B. अनुभवजन्य ज्ञान
2. ‘साखी’ किस छंद में लिखी जाती है?
A. चौपाई
B. रोला
C. दोहा
D. सोरठा
उत्तर: C. दोहा
3. कबीर की भाषा को क्या कहा जाता है?
A. संस्कृत
B. खड़ी बोली
C. ब्रजभाषा
D. सधुक्कड़ी
उत्तर: D. सधुक्कड़ी
4. कबीर की वाणी का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
A. मनोरंजन
B. धर्म का प्रचार
C. आत्मज्ञान का प्रसार
D. साहित्यिक शैली दिखाना
उत्तर: C. आत्मज्ञान का प्रसार
5. कबीर किसका विरोध करते हैं?
A. कविता का
B. प्रेम का
C. धार्मिक पाखंड का
D. संगीत का
उत्तर: C. धार्मिक पाखंड का
6. कबीर के अनुसार ‘मैं’ और ‘हरि’ साथ क्यों नहीं रह सकते?
A. क्योंकि वे मित्र नहीं हैं
B. क्योंकि अहंकार और ईश्वर साथ नहीं रह सकते
C. क्योंकि हरि डरते हैं
D. क्योंकि मैं मूर्ख है
उत्तर: B. क्योंकि अहंकार और ईश्वर साथ नहीं रह सकते
7. कबीर की वाणी में किस प्रकार की भाषा प्रमुख है?
A. कठिन संस्कृत
B. सहज और सरल
C. अंग्रेज़ी
D. अरबी
उत्तर: B. सहज और सरल
8. कबीर के अनुसार राम कौन हैं?
A. राजा दशरथ के पुत्र
B. मिथिला के दामाद
C. निराकार परमात्मा
D. चित्रकूट निवासी
उत्तर: C. निराकार परमात्मा
9. कबीर ने किसको सच्चा पंडित कहा है?
A. जो शास्त्र पढ़े
B. जो गीता जाने
C. जिसने प्रभु का प्रेम पहचाना
D. जो संस्कृत बोले
उत्तर: C. जिसने प्रभु का प्रेम पहचाना
10. “पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ” पंक्ति में क्या संदेश है?
A. पढ़ाई जरूरी है
B. किताबें ज्ञान देती हैं
C. अनुभव के बिना पोथियाँ व्यर्थ हैं
D. किताबें ही सब कुछ हैं
उत्तर: C. अनुभव के बिना पोथियाँ व्यर्थ हैं
11. कबीर के अनुसार मधुर वाणी का क्या प्रभाव होता है?
A. क्रोध बढ़ता है
B. युद्ध होता है
C. प्रेम बढ़ता है
D. कोई असर नहीं
उत्तर: C. प्रेम बढ़ता है
12. कबीर किस मार्ग के उपासक थे?
A. ज्ञान मार्ग
B. कर्म मार्ग
C. भक्ति मार्ग
D. व्यापार मार्ग
उत्तर: C. भक्ति मार्ग
13. कबीर किस धार्मिक समुदाय से संबंध रखते थे?
A. हिन्दू
B. मुस्लिम
C. तीनों नहीं
D. सिख
उत्तर: कोई भी नहीं (इन तीनों में से)
14. “जब मैं था तब हरि नहीं” का भाव क्या है?
A. हरि दूर चले गए
B. मैं हरि बन गया
C. जब अहंकार था, तब ईश्वर नहीं था
D. हरि खो गए
उत्तर: C. जब अहंकार था, तब ईश्वर नहीं था
15. कबीर की साखियाँ समाज को क्या सिखाती हैं?
A. डरना
B. पाखंड अपनाना
C. प्रेम, सत्य और सहिष्णुता
D. वैर करना
उत्तर: C. प्रेम, सत्य और सहिष्णुता
16. कबीर की साखियों में कौन-सा भाव प्रमुख है?
A. क्रोध
B. वियोग और प्रेम
C. हास्य
D. शौर्य
उत्तर: B. वियोग और प्रेम
17. कबीर ने ईश्वर को कहाँ बताया है?
A. मंदिर में
B. मस्जिद में
C. हर जीव के भीतर
D. आकाश में
उत्तर: C. हर जीव के भीतर
18. कबीर की रचनाओं में किसका प्रभाव नहीं है?
A. अवधी
B. ब्रजभाषा
C. फारसी
D. अंग्रेज़ी
उत्तर: D. अंग्रेज़ी
19. कबीर किस वर्ग के लोगों में अधिक लोकप्रिय थे?
A. राजा
B. विद्वान
C. सामान्य जन
D. सैनिक
उत्तर: C. सामान्य जन
20. कबीर के अनुसार कौन-सी वाणी उचित नहीं है?
A. नम्र वाणी
B. कटु वाणी
C. प्रेममयी वाणी
D. भक्ति वाणी
उत्तर: B. कटु वाणी
‘साखी’ पाठ पर आधारित प्रश्न True or False (सही या गलत)
सही या गलत –
कबीर अनुभव पर आधारित ज्ञान को श्रेष्ठ मानते थे।
उत्तर: सहीकबीर की भाषा को सधुक्कड़ी और पचमेल खिचड़ी कहा जाता है।
उत्तर: सही‘साखी’ शृंगार रस आधारित कविता होती है।
उत्तर: गलतकबीर के अनुसार सिर्फ पोथियाँ पढ़ने से कोई पंडित नहीं बनता।
उत्तर: सहीकबीर राम को दशरथ के पुत्र के रूप में पूजते हैं।
उत्तर: गलतकबीर ने अहंकार को आत्मज्ञान में सबसे बड़ी बाधा बताया है।
उत्तर: सहीकबीर की वाणी में संस्कृत के शब्दों का ही प्रयोग हुआ है।
उत्तर: गलतकबीर का मानना था कि मीठी वाणी बोलने से दूसरों को सुख मिलता है।
उत्तर: सहीकबीर की रचनाओं में केवल हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है।
उत्तर: गलतसाखी दोहा छंद में रचित होती है, जिसमें 24 मात्राएँ होती हैं।
उत्तर: सहीकबीर के अनुसार, राम का वियोग सहना आसान होता है।
उत्तर: गलतकबीर का अनुभव क्षेत्र केवल बनारस तक ही सीमित था।
उत्तर: गलतकबीर की वाणी गुरु और शिष्य के बीच का संवाद है।
उत्तर: सहीकबीर की साखियाँ हमें सामाजिक और आत्मिक शिक्षा देती हैं।
उत्तर: सही“हम घर जाल्या आपणाँ” पंक्ति त्याग और ज्ञान की प्रतीक है।
उत्तर: सहीकबीर की साखियाँ मनुष्य को पाखंड अपनाने की प्रेरणा देती हैं।
उत्तर: गलतकबीर के अनुसार, गहन पुस्तक अध्ययन से ही मोक्ष मिलता है।
उत्तर: गलतसाखी में व्यक्त शिक्षा संक्षिप्त होते हुए भी गहरी होती है।
उत्तर: सहीकबीर की भाषा आमजन की भाषा थी, जो सबको समझ में आए।
उत्तर: सहीकबीर केवल वैराग्य की बातें करते हैं, प्रेम की नहीं।
उत्तर: गलत
रिक्त स्थान भरिए – ‘साखी’ (कबीर) पर आधारित प्रश्न
‘साखी’ शब्द का मूल रूप __________ है।
उत्तर: साक्षीकबीर की भाषा को __________ भी कहा जाता है।
उत्तर: सधुक्कड़ीकबीर __________ ज्ञान को शास्त्रीय ज्ञान से श्रेष्ठ मानते हैं।
उत्तर: अनुभवजन्यकबीर की साखियाँ __________ छंद में रची गई हैं।
उत्तर: दोहा“ऐसी बानी बोलिए, __________ खोइ।”
उत्तर: मन का आपा“कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढै __________।”
उत्तर: बन माहिं“जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं __________।”
उत्तर: मैं नाहिं“पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, __________ न कोइ।”
उत्तर: पंडित भयाकबीर की भाषा में अवधी, भोजपुरी, पंजाबी और __________ भाषाओं का प्रभाव है।
उत्तर: राजस्थानीकबीर की वाणी समाज में __________ और आत्मज्ञान का संदेश देती है।
उत्तर: सद्भावना“बिरह भुजंगम तन बसै, __________ न लागै कोइ।”
उत्तर: मंत्रकबीर के अनुसार प्रभु हर __________ में विद्यमान हैं।
उत्तर: घट-घट“हम घर जाल्या आपना, लिया __________ हाथ।”
उत्तर: मुराड़ाकबीर की वाणी में __________ का विरोध किया गया है।
उत्तर: पाखंडकबीर राम को __________ रूप में पूजते हैं।
उत्तर: निर्गुण“सुखिया सब संसार है, खायै अरू __________।”
उत्तर: सोवैकबीर का जन्म __________ में माना जाता है।
उत्तर: काशी (वाराणसी)कबीर के अनुसार, मिठास भरी वाणी से दूसरों को __________ होता है।
उत्तर: सुख“निंदक नेड़ा राखिए, __________ बंछाइ।”
उत्तर: आंगनकबीर की वाणी में जीवन के गूढ़ __________ समाए हैं।
उत्तर: तत्वज्ञान